Tum Mujko Kab Tak Rokoge (Hindi Poem)
मुट्ठी में कुछ सपने लेकर , भर कर जेबों में आशाएं
दिल में है अरमान यही , कुछ कर जाएं , कुछ कर जाएं।
सूरज सा तेज़ नहीं मुझमे , दीपक सा जलता देखोगे
सूरज सा तेज़ नहीं मुझमे , दीपक सा जलता देखोगे
अपनी हद रौशन करने से
तुम मुझको कब तक रोकोगे..
मैं उस माटी का वृक्ष नहीं , जिसको नदियों ने सींचा है
मैं उस माटी का वृक्ष नहीं , जिसको नदियों ने सींचा है
बंजर माटी में पलकर मैंने मृत्यु से जीवन खिंचा है
मैं पत्थर पे लिखी इबारत हु , शीशे से कब तक तोड़ोगे
मिटने वाला मैं नाम नहीं,
तुम मुझको कब तक रोकोगे ,
तुम मुझको कब तक रोकोगे..
इस जग में जितने जुल्म नहीं उतने सहने की ताकत है
इस जग में जितने जुल्म नहीं उतने सहने की ताकत है
तानो के भी शोर में रहकर , सच कहने की आदत है
मैं सागर से भी गहरा हु ,मैं सागर से भी गहरा हु,
तुम कितने कंकड़ फेंकोगे
चुन चुन के आगे बढूंगा मैं,
तुम मुझको कब तक रोकोगे,
तुम मुझको कब तक रोकोगे..
झुक झुक कर सीधा खड़ा हुआ , अब फिर झुकने का शौख नहीं
झुक झुक कर सीधा खड़ा हुआ , अब फिर झुकने का शौख नहीं
अपने ही हाथों रचा स्वयं , तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं
तुम हालातों की भट्टी में जब जब भी मुझको झांकोगे
तब तप कर सोना बनूँगा मैं
तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे….
Poem By-Amitabh Bachchan